जीवन
जीवन


निर्माण हूँ
ध्वंस भी
म्यान से निकली प्यासी तलवार हूँ मैं.
वेदोमय हूँ
अविचारी भी
दशानन सा अहंकार हूँ मैं.
अंत हूँ
आरंभ भी
जीत जो हर बार चखे वो हार हूँ मैं.
इंसानियत हूँ
हैवानियत भी
यज्ञ में आग से मचे वो हाहाकार हूँ मैं.
सरल हूँ
कुटिल भी
धन्य हो जीवन जिस से वो ज्ञान का साक्षात्कार हूँ मैं.
सुख हूँ
दुख भी
जीवन रसो के विभिन्न प्रकार हूँ मैं.
जान ना पायेगा तू मुझे
अनेक है रूप मेरे
पर मैं एक हूँ
पर मैं एक हूँ!