इक नज़्म लिखी है
इक नज़्म लिखी है
इक नज़्म लिखी है
इन हवाओं के साथ भेज रहा हूं
तेरे जवाब की उम्मीद नही है पर
तेरे पढ़ने की ख्वाइश है
लेकिन इंतजार करता हूं मै
कुछ पल मिले थे आज खुद के लिए,
जिनमे खयाल तुम्हारा आया है।
हमारी यादें झांकती है उस टूटी सुराख से
जिन्हे अब मैंने हसीन पलों की अलमारी में बंद कर किया है।
तेरे खुशनुमा साथ की असीर थी ये खुशी,
खैर तेरे जाने से साथ नही है अब
पर तेरी यादों के झोंको में कभी कभी मुस्कुरा देता हूं मै।
मिलो चल सकता हूं मै,
पर तेरे शहर का ये सफर मंजिल नहीं दे सकता ये जानता हूं मै।
इस कहानी में मैने कुछ पन्ने खाली ही रखे है
ताकि ये किस्सा एक बार के लिए तो अंजाम तक पोहचाया जाए
मैं परेशान हो गया हूं इस कहानी को संवारते संवारते
बस एक अलविदा कहकर
इसे एक प्यारा सा पूर्णविराम देकर इसकी खूबसूरती बढ़ा देना चाहता हूं मै।
एक खत भेजा है हवाओं के साथ
जिसके जवाब का इंतजार करता हूं मै।

