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Pritam Khaple

Others

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Pritam Khaple

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वजीर

वजीर

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सल्तनत घूम कर आए हैं सभी ,

वज़ीर फ़र्मा रहे अब आराम हैं। 


राजा कहती है जिसे दुनिया सारी,

रोज़ मर्रा की ज़िंदगी में जूझ रही अवाम है। 


हाथी ठहरे रक्षक सल्तनत के,

शायद ही मरे सिपाही कोई,जब तक वज़ीर ना दे इजाज़त इनका नहीं कोई काम है। 


पत्रकारिता के नाम पे ऊँठ करते है सिर्फ़ बकेती,

पेशा छोड़ सच्चाई का अब भड़काके सबको, नोश फ़रमाते ये जाम है। 


खेमा बदलते रहते है बार बार ये,

इम घोड़ों का ईमान वही जहाँ मिलता इन्हें दाम है। 


सिपाही रहते है तैनात सीमा पर,

लेकिन हाथी ना कहे कोई बात तब तक इनका दर्जा आम है।


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