सल्तनत घूम कर आए हैं सभी , वज़ीर फ़र्मा रहे अब आराम हैं। सल्तनत घूम कर आए हैं सभी , वज़ीर फ़र्मा रहे अब आराम हैं।
यह कविता इंसान के आज की परिस्तिथि को दर्शाती है। इंसान आज बस दौड़ लगाए जा रहा है। पैसे कमाने की दौड़, ... यह कविता इंसान के आज की परिस्तिथि को दर्शाती है। इंसान आज बस दौड़ लगाए जा रहा है।...