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Arunima Bahadur

Romance

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Arunima Bahadur

Romance

जीवन संजीवन

जीवन संजीवन

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जो न प्रिय पहचान पाती।

दौड़ती क्यों प्रति शिर में प्यास विधुत सी तरल बन

क्यो अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?


जो न प्रिय मैं गीत गाती।

नित नव शब्द बन फिर,एक माला क्या बन पाती

न जान कान्हा तुझको,क्या संवारती मैं यह जीवन?


जो न मैं तुझे नैनन बसाती।

राग भी बैराग बनाती,भटक भटक बस गलियों में फिर,

क्या बना पाती यह मीरा, एक कृष्णमय सा जीवन?


न अगर मैं विरह पाती।

नित अश्रुधार न पाती,कैसे बनता अंतस फिर निर्मल,

क्या मिल पाता मुझे,मिलन का यह सुख संजीवन?


आज मैं हूँ संग तुम्हारे।

प्रति शिरा ही कान्हा पुकारे,शब्द शब्द बस कान्हा बनता,

पा कर यह प्रेम तेरा,आनंदमय ही अब जीवन।


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