जीवन है बहना
जीवन है बहना
सरिता का लक्ष्य सागर है
नदी उमड़ घुमड़ कर दौड़ती है,
अपने प्रिय समुद्र से मिलना है
पर नदिया का क्या कहना है।
नदिया कहती लक्ष्य सागर नहीं
मैं समुद्र से मिलने नहीं दौड़ती,
खारे जल से कौन मिलना चाहेगा
जो पिपासा तक शांत नहीं करता ।
तो फिर नदी दौड़ती क्यों है ?
क्योंकि बहना ही मेरा जीवन है,
चलते रहो चलते रहो रुको नहीं
चलना ही मेरा काम है कर्तव्य है।
मुझे परमात्मा से नहीं मिलना ,
मुझे मिले तो तुम्हारे नाम कर दूँ,
क्या लक्ष्यमुक्त जीवन जिया जाय
बस प्रवाहमान रहना गतिशील रहना ।
समुद्र में जाने के बाद तो शांत हो जाता
यह देखा हुआ मंजर है,
कोई भी प्रवाह पहिले बीच के गड्ढे को
भरता है तब पानी आगे जाता है।
उसके बाद ही गति होती है
प्रवाह किनारे बनाते चलता है,
हरा भरा करता लोक और वेद को छूता है
चुपचाप से बहता अपनी मौज में रहता है।
