जीवन और स्मृति
जीवन और स्मृति
जीवन में नहीं, हृदय में नहीं
तुम मुझे अपनी स्मृति में रखना
यथार्थ में नहीं, सत्य में नहीं
तुम मुझे अपने स्वप्न में मिलना
तुम्हें मेरे प्रेम में जिज्ञासा है
तुम्हें मेरे प्रेम की अभिलाषा है
मुक्त है मेरा प्रेम बंधनों से
क्या तुम मुक्त रख पाओगे
मेरे प्रेम की तुम सीमाएँ बनो
मैं मेरे प्रेम को मुक्त रखूंगी
तुम घने वन का अंधकार बनो
मैं रात्रि की ज्योति पुंज बनूंगी
तुम प्रातः का एकांत बनो
मैं पाञ्चजन्य शंख की गूँज बनूंगी
तुम पावन गंगा की जलधारा बनो
मैं सुख की अंतिम राख बनूंगी
तुम जीवन से युक्त तरुवर बनो
मैं तुम्हारी सूखी शाख बनूंगी
जब तुम प्रकाश में समाओगे
मैं मुक्त हो जाऊंगी ज्योति पुंज की तरह
जब तुम एकांत में पुकारोगे
मैं विलीन हो जाऊंगी अंतिम गूंज की तरह
जब तुम मुझे स्वयं में समाओगे
मैं मुक्त हो जाऊंगी सूखे राख की तरह
जब तुम मुझ पर प्रेम बरसाओगे
मैं मुक्त हो जाऊंगी टूटे शाख की तरह
मुक्त हूँ मैं मुक्त है मेरा प्रेम
तुम मुक्त रख पाओगे??