तोहफ़ा
तोहफ़ा
सोचता हूं कुछ दूं तोहफे में
पर बाज़ार में कुछ दिखता ही नहीं
कीमती हो जो तुम्हारी हंसी सा
ऐसा कुछ बिकता ही नहीं
मिले खुशी तुमको हर पल जिससे
कुछ ऐसा मैं दे जाऊं
पास तुम्हारे सदा रहे वो
क्या तोहफा ऐसा लाऊं
सोचा तुमको मैं पैसे दे दूं
पर कब तक पास रहेंगे,
कागज़ के टुकड़े ही तो हैं
कब तक खास रहेंगे
कोई सामान तुम्हें मैं दे दूं
दे सके तुम्हें जो सहारा
करे जरूरत पूरी कोई
लगे तुम्हें कुछ प्यारा
पर वजहों के मिट जाने पर
क्या उसके साथ करोगे
नहीं जरूरत होगी फिर
कैसे मुझको याद करोगे
कोई मूर्ति तुमक
ो दे दूं
ईश्वर का रूप हो न्यारा
मांग सको हिम्मत तुम जिससे
तुमको मिले सहारा
पर जो दिखता हो मन के भीतर
बैठ वहीं बतियाता
उस अनंत को एक शिला में
बांध के कैसे लाता
सजे हंसी होंठों पे तुम्हारे
खुशियों से झूमे दिल
क्या दूं तुमको तोहफे में मैं
ये सवाल बहुत ही मुश्किल
लो मैं देता हूं तुमको अब वो
जो बस और बस है मेरा
मेरे मानस चिंतन में
ईश्वर ने जो है उकेरा
लो सौंप रहा हूं खुद को तोहफे में,
अपना जीवन दर्शन कहता हूं,
मन बन जाता हूं मैं तुम्हारा
सदा साथ रहता हूं।।
ईश्वर प्रेम बनाए रखें