माया है कोई!
माया है कोई!
वो पहाड़ों को काटती झरनों सी है।
वन में आजाद हिरणों सी है ।
वो अमावस की रात में सितारों सी है।
दुनियादारी से वीरान, गलियारों सी है।
ओस से गीली घास सी है वो।
सुकून के नायाब एहसास सी है वो।
खयालों में मुकम्मल रात सी है वो।
उसे मालूम नहीं, कितनी ख़ास सी है वो।
उसकी अलक, अफलक की बेलो सी हैं।
उसमें खूबियां ऐसी ढेरों सी हैं।
उसके जिक्र से, जेहन में, उठती लहरों सी हैं।
वो परेशानियों से मेरे, पहरों सी हैं।
हां माना थोड़ी पेचीदा है वो।
मेरी हर कसम की गीता है वो।
फलक भी जिसके कदम पे हो।
अलग सी चमक बदन में हो।
वो ऐसा शायद कोई वहम ही हो।
या शायद खुदा का हम पर रहम ही हो।
वो शजर के तले मिलती प्यारी सी छाया है।
वह जन्नत से उतरी, मानो कोई काया है।
वैकंठ की मानो राजकुमारी हो कोई,
वो जितनी सच है ...उतनी ही माया है।
She is some magic, some chaos and a bit of poetry!