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Suman Sachdeva

Romance

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Suman Sachdeva

Romance

जी चाहता है

जी चाहता है

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जी चाहता है

बन के मखमली धूप

बिखर जाऊं तुम्हारे 

ठिठुरते अरमानों पर 

और रोशन कर दूं 

तुम्हारे मन का 

हर कोना


या कभी बन के बारिश

भिगो डालूं तुम्हारा 

तपत अन्तर्मन

जिसमें धुल जाएं 

सब गिले शिकवे 

और छा जाए 

खुशियों का इन्द्रधनुष

तुम्हारे मस्तक पर


और कभी बनके 

सुरभित बयार

महका दूं

तुम्हारी सुप्त भावनाएं

और उस सुरभि से

खिल उठे तुम्हारा 

मन आंगन

सदा के लिए 


काश ! 

कर पाऊं यह सब 

महज़ आरज़ू है मेरी

मगर 

प्रकृति का यह संचालन

मेरे वश में कहां ?


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