जिद हमारी
जिद हमारी
आ जाये जो अपनी पर,
तो सुकून क्या?
मंजिल ही क्या?
जो ठान ले,
करके हासिल ही रहते है,
अदब से सर झुका लेते है
बड़ों के चरणों में,
पाने को सुकून,
कदमों को बढ़ा आगे
मंजिल को पा ही लेते है...
हमें क्या डरायेंगे वो
पैरो के छालों से,
दुआओं का मलहम
साथ लिए चलते है