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AMAN SINHA

Drama Action Others

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AMAN SINHA

Drama Action Others

झूठी सख्शियत

झूठी सख्शियत

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राह में मैं एक दफा, खुद से ही टकरा गया

अक्स देखा खुद का तो, होश मुझको आ गया

दूसरों को दूँ नसीहत, काबिलीयत मुझमें नहीं

आँख औरों को दिखाऊं, हैसियत इतनी नहीं


आईने में खुद का चेहरा, रोज ही तकता हूँ मैं

मैं भला हूँ झूठ ये भी, खुद से ही कहता हूँ मैं

अपने फैलाये भरम में, हर घड़ी रहता हूँ मैं

सोच की मीनारों पर, बस पुल बांधता हूँ मैं


बातों में मेरी सच की, दूर तक झलक नहीं

इस जमी मिलता जैसे, दूर तक फलक नहीं

क्या गलत है क्या सही है, मुझको ना परवाह है

जो भी मैंने चुन लिया है, बस सही वो राह है


बे अदब सा दूसरों के संग, पेश मैं आता रहा

गैर तो क्या अपनो का भी, दिल मैं दुखाता रहा

बातों में लहजा नहीं, ना उम्र का ख़याल है

फितरत आवारों सी, और बेहूदी सी चाल है


कौन है जो इस जहां में, मेरा कुछ बिगाड़ेगा

देख के वो रूतबा मेरा, अपना सर झुका लेगा

इस भरम में जी रहा हूँ, जिंदगी के चार दिन

शख्सियत झूठी सही पर, जी ना पाऊं इसके बिन


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