झूठ
झूठ
एक नाम मिट गया,
तेरा नाम रटते-रटते,
उस नाम संग चला गया,
हर राज़ हँसते - हँसते।
कभी झूठ बोला करते थे,
उस नाम के सहारे,
आज सोच रहे हैं,
अब किस नाम तुझे पुकारें ?
उसके नाम से घोंपा था,
झूठ बोलने का खंजर,
अब देख डूब रहे हैं,
इस भरे समुन्दर।
वो शख्स चला गया,
अपनी यादें देकर कई,
जिसमे जुड़ी हुई हैं,
अपने किस्सों की हँसी।
कोई समझे या ना समझे,
पर कुछ लोग अचानक,
ऐसे ही मिल जाते हैं,
और ले आते हैं रौनक।