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दशरथ जाधव

Tragedy

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दशरथ जाधव

Tragedy

जहर का कहर

जहर का कहर

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विज्ञान से मनु जितना दौड़ा

एक कहर से आज अड़ा

प्रकृति तेरे सामने ये जीव

हाथ बाँधे दोनो मूक है खड़ा। 


इस जीवन-ए-पवन को भी

महा बुद्धिवंत तूने नहीं छोड़ा,

शुद्धता का पैगाम जो ले जाए

वही आज ज़हर लेकर है खड़ा।


रिश्तों की दूरियों को एक पल में

करके खत्म अपनों में जाना पड़ा,

आँचल में कुछ भी तो नहीं है,

इस कारण था तू पिता से लड़ा।


पर छोड़ के शहर की भीड़ को

गाँव के आँचल में आना पड़ा,

सालों से जो राह ताकते थे तेरी

क्या अब तेरे डर ने मन को छेड़ा?


         



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