परछाई
परछाई
किसी और की परछाई को, अपना कैसे मान लिया ?
पल भर की अँगड़ाई को, सपना कैसे मान लिया ?
देखा था आँखों ने मेरी, प्यारी हंसों की जोड़ी को,
ख़ूब सजाया था जतन से, दो पहियों की गाड़ी को
हाथ पकड़ने से पहले ही, दूर होना कैसे ठान लिया ?
किसी और की परछाई को, अपना कैसे मान लिया ?
समझ न पाया उसकी चाल, प्रेम का नाम लगा जपने,
क्या बताऊँ मेरा हाल, चाँद भी अब है लगा तपने,
ज़िन्दगी पे मर-मिटने वाला, मरना कैसे जान लिया ?
किसी और की परछाई को, अपना कैसे मान लिया ?
नजरें गड़ाए बैठा हूँ, उसके जाने वाले रस्ते में,
नीलाम कर गए मुझको, उसके चाहने वाले सस्ते में,
भोली सूरत वाली ने, ठगना कैसे जान लिया ?
किसी और की परछाई को, अपना कैसे मान लिया ?
बिकता है प्यार यहाँ पर, खुल गए है इसके बाज़ार,
क्या दर्द हुआ क्या तुम जानों, जब टुकड़े हुए दिल के हज़ार,
जा ठगिनी ! मैंने भी इस छल से, बचना कैसे जान लिया।
किसी और की परछाई को, अपना कैसे मान लिया ?