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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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जग जननी

जग जननी

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हे! प्रेम मयी माँ,जगजननी, मुझपे कृपा कीजिए

तेरे द्वार खड़ा बड़ी देर से, दया-दान मुझको दीजिए


जग में तेरा आना हुआ, ताप - शाप मिटाने को

अब हम करते हैं विलाप, शाप मुक्त कर दीजिए


पूत न सही कपूत, आ न सका तेरे दरशन को

अन्त समय हे ! करुणा मयी माँ, मुझे क्षमा कर दीजिए


आप तो किस लोक में हैं, उसका तो पता नहीं

लेकिन तुम बिन कैसे मैं जिऊँ अब तो बता दीजिए


माँ तुझसे बिछुड़ कर माँ, अब जाऊँ मैं कहाँ

तड़प रहा है "नीरज"अब तो दरस दीजिए।


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