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संजय असवाल

Romance

4.7  

संजय असवाल

Romance

जबसे तुम मिले...!

जबसे तुम मिले...!

1 min
430


मैं खुश था खुद में 

एक हसीं जिंदगी जी रहा था

करता था मन की 

फिजाओं में घूम रहा था।


ना फिक्र थी जमाने की 

खुद में मशगूल रहता था 

खुद से प्यार था इतना

कि खुद अपनी तलाश में फिरता था।


फिर ना जाने 

क्यों अचानक यूं बरसात हुई 

जब से तुम मिले 

और ये आंखें चार हुई।


अब सब बदल गया 

बदल गए नजारे

पल थे जो मेरे

अब हो गए सब तुम्हारे।


ना रातों को नींद है 

ना चैन दिल को

ये आंखें खोई खोई रहती हैं

बस तेरे इंतजार में।


डरता भी हूं 

कोई चुरा ना ले 

इन ख्वाबों के आसमान को,

तेरी एक झलक 

और मीठी उस मुस्कान को।


जब से तुम मिले

इन आंखों की बेबसी 

दिल की हर नब्ज़

सुनने लगा हूं

बेसब्र हो हर पल 

तेरी चाहत में

जीने लगा हूं।


ये प्यास

ये तड़प 

अब मर्ज बन बढ़ने लगी है 

इन आंखों को बेवजह दर्द देने लगी है ।


बहते हैं अश्क अब

तेरे न होने पर 

तेरी खुशबू को यादों में

अपनी लिए घूमता हूं।


सोचता हूं अब 

क्या जिंदगी थी मेरी 

अब ये क्या होने लगा है 

जब से तुम मिले

सब यूं बदलने लगा है।


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