जब पहली बार देखा था
जब पहली बार देखा था
हुआ ऐसा के जब उसे पहली मर्तबा देखा था, फिर कुछ ना देखा था, वो भी क्या मौसम था जब उसको पहली बार देखा था , उसकी मुस्कान देखकर होश खो बैठा था, इतना पागल हो गया था के दूर निगाहो तक उसको देखे जा रहा था अकेले बैठा रहता था घण्टो इतजार् करता था जब कहीं ना दिखती तो बेचैन सा हो जाता था याद करके उसकी हरकतें अकेले मे मुस्करा लेता था याद करता वो पल जब देखा उसको पहली बार जैसे सदियां जी आया उसकी पलकों कि हरकत जो सैकड़ो लहरों सी उत्पात मचा री थी, उसके उलझे सुलझे बाल लहजा जैसे हवाएँ रास्ता बदल रही थी हाँ उस दिन मुझे मोहब्बत हुई थी,
उसको पाने कि शिद्द्त ऐसी थी मानो मन मे क्रांति कि लहरे उमड रही हो जैसे मंदिर मे बज रही घन्टी के शोर से मन उफान पर था, गंगा घाट पर मे बैठा हुआ निश्छल नीर निहार रहा था , बेकाबू हो रहे लब्जो को सम्भलना थोड़ा मुश्किल था फिर हिम्मत का जोड़ बिठाकर उसको सब कुछ बताना था के मोहब्बत है तुमसे मगर इस डर से होंठ सूखे पड रहे थे जैसे नजरों का सुकून शायद खो ना बैठु पाने कि चाह मे खो ना बैठु,, कहीं ना कहीं उसे भी समझ आ रहा था वो भी चुपके से आँखे पढ़ने कि कोशिश करती थी मे भी अनजान होकर नजरें झुका लिया करता था जैसे हि गुजरती थी दूर तक बस देखें जा रहा था मानो वो मुड़ कर मुझे स्पर्श कर रही हो,, देखता रहता था उसे घर कि खिडकियों मे आलो मे ,खुली जुल्फो मे गीले बालो मे बेसक पाना कोई पहाड़ तो नहीं बस उसकी हर बात कबुला कोई चीज़ कि फरमाइश नहीं,,माना औरु के मुकाबले कुछ खास पाया नहीं ।मगर जोर जबरदस्ती से उसको बनाया नहीं जो मिला जितना मिला अपना लिया बहुत ज्यादा कि ख्वाइश नहीं कि हवस कि नजरों से जिस्म कि नुमाइश नहीं कि कुछ हूँ जितना उसको पाया है और कि तरह उसको गिरा कर खुद को उठाया।