मैं चाहती हूँ,,,,
मैं चाहती हूँ,,,,
के रोज़ गाती हूँ तुम्हें और रोज़ गाना चाहती तुम्हें
अपने होठों का संगीत बनाना चाहती हूँ तुम्हें
हर रोज़ गुनगुना चाहती हूँ तुम्हें गाते गाते मुस्कुराना चाहती हूँ
तुम्हारी धुन मे नाचना चाहती हूँ ।
मदहोश होकर कहीं मस्ती मे झूमना चाहती हूँ तुम्हें ।।
अपने होठों पर रखकर सरेआम करना चाहती हूँ
तुम्हें ,,कहीं चिडिया सी चहचहाना चाहती हूँ
हवा बनकर तुम्हारे साथ उड़ना चाहती हूँ बादल बनना चाहती हूँ
बनकर बादल बरसाना चाहती हूँ तुम पर ,,
बारिश की बूंद बनाना चाहती हूँ
धरती के मुख सा चुमना चाहती हूँ
तुम्हें तुम्हारे प्रेम मे एक खूबसूरत कविता बनाना चाहती हूँ
मधुर शब्दोंं से तुम्हारा आवहान् करना चाहती हूँ
मैं दीवार बनना चाहती हूँ उस पर तुम्हारी तस्वीर सजाना चाहती हूँ
मैं पेड़ कि लता बनाना चाहती हूँ
झूम झूम कर आलिंगन करना चाहती हूँ
मैं बनना चाहती हूँ वो कागज का पन्ना जिस पर तुम्हारा भाव पिरोना चाहती हूँ ,,
मैं खुशबू बनना चाहती हूँ मन पवन महकाना चाहती हूँ
तुम्हें एक दीपक बनके तुम्हें उजाला देना चाहती हूँ
जल जल कर खुद को तुम्हारा नाम् रोशन चाहती हूँ
मैं सपना बनना चाहती हूँ हर दम तुम्हारा साया बनकर तुम्हें सजाना चाहती हूँ.