वो दौर मुस्कुराता है
वो दौर मुस्कुराता है
वो पंगत में बैठ कर निवाले को तोड़ना
वो अपनो की संगत में रिश्तो को जोड़ना
वो दादा का लाटी पकड़ कर गांव में घूमना
वो बच्चों का झुंड मस्ती में झूमना
वो दादी का नजर उतरना और मत्था चूमना। ,,,,,
वो दादी की सोते वक्त किस्से कहानियां कहती थी
आंख खुलते ही मां की आरती सुनाई देती थी ,,,,,,,
बैल बकरी से घर सरोकार था तुलसी आंगन में घर भरा परिवार था
अब हर इंसान खुद से दूर होता जा रहा है संयुक परिवार की महता खोता जा रहा है
माली अपने हाथ से बीज बोता था घर ही अपने आप में पाठशाला होता था
संस्कार और संस्कृति रग रग में बसते थे उस दौर में मुस्कराते नही थे हंसते थे ,,,,
गली गली में बुजुर्गों का पहरा होता था
लड़कियों की पायल खनकती थी हाथो में चूड़ियां छनकती थी ,,माथे पर बिंदिया चमकती थी
भोर होती मंदिर की घंटियां बजती थीं
वो दौर गया वो यादें जैसे आंखो में सिमट गई कोतुहल से भरी जिंदगी क्षण भर में बीत गई.