वो मैं हूँ
वो मैं हूँ
मैंने कहीं बार तुमको मेरा परिचय करवाया है
खुद को तुमसे अलग नहीं बताया है
मैं तुम में एक विचार हूँ जो हर बार तुम्हारे परिहास में असास बनाया है
फिर भी तुम मुझे अनजान हो जाने अनजाने हैरान हो चलो।
मैं तुम्हे अपने बारे में बताती हूँ तुम्हारे सवालो को मिटाती हूँ,
अपना परिचय करवाती हूँ ,,,,
गुजार दिए होंगे कहीं महीने कहीं साल कहीं दिन तुमने
जो काट ना सकोगे वो रात मैं हूँ
कि होगी कहीं दफा गुफ्तगु तुमने लोगों से
मगर जो दिल पर लगेगी वो बात मैं हूँ
चलती सड़को पर देखते होंगे तुम लोगों कि भीड़ को
मगर वीरान सडकों पर दिखती छाया वो मैं हूँ
भीड़ मैं जब तुम तनहा खु
द को पाओगे
अपनेपन का अहसास करा दे वो एक साथ मैं हूँ
बिताये होंगे कहीं हसीन पल तुमने लोगों के साथ
मगर जो भूल ना पाओगे वो याद मैं हूँ
यूँ तो भीगे होंगे लाखों दफा तुम बरसात में
मगर जो रुह को भीगा दे वो एक अहसास मैं हूँ
देखें होंगे कहीं हुस्न ए आब् तुम्हारी आँखों ने
मगर जो दिल को सुकून दे वो आलम मैं हूँ
देखे होंगे लाखों सपने तुमने सोए हुए
जो जागते नैनों ने देखा वो ख्वाब में हूँ
अनदेखा किया होगा तुम्हारी गलतियों को कहीं मर्तबा
किसी ने जो गलतियों पर डांटेगा वो शक्स मैं हूँ
जो तेरा हाल पढ़ सके तेरी झुठी मुस्कुराहटों के पीछे सवाल पूछ सके।
नींद भरी आँखों का मलाल देख सके और
जब तुम कहीं थक हार बैठे हो तुम्हें जो
उम्मीद दे सके वो एक आस"मैं हूँ।