जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे
जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे
जाऊँ कहाँँ तजि चरन तुुम्हारे,
ब्रह्म, बिष्णु, शिव आते हैै द्वार तुम्हारेे।
बिष्णु के निद्रित होने पर,
मधु कैटभ के आने पर
सृृष्टि रचयिता ब्रह्म भी तो,
प्रताडित हो जाते है।
महाविद्या महास्मृति कहकर,
तुुुमको ही टेर लगाते है।
सहस्र वर्षों युद्ध करते,
देवता पराजित हो जाते हैैंं।
स्वर्ग लोक छिन जाने पर,
वो भी जमीं पर आ जाते हैं।
अपना सिहांंसन पाने को,
तुमको ही प्रकट कराते हैै।
इन्द्र वरूण सब आते हैं द्वार तुम्हारेे,
जाँँऊ कहाँँ तजि चरन तुुम्हारे।
