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Vijay Kumar parashar "साखी"

Classics

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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जातिवाद

जातिवाद

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आज भी देश में छुआछूत बहुत होती है

कहते है जिन्हें हम भारत की आत्मा,

आज भी वहाॅं जातिवाद पर रार होती है

मैंने जातिवाद छोड़ दिया तो क्या हुआ,

एक बूंद से बरसात थोड़े होती है


आज भी देश में छुआछूत बहुत होती है

शहरों ने जातिवाद पर कुछ प्रहार किया है

गांवों ने इसका श्रृंगार किया है

बहुधा जातिवाद की शुरुआत गांवों से होती है

वोटों की राजनीति में भले ही हम हिन्दू है

असल मे यहाॅं दिवाकर से ही रात होती है


आज भी देश में छुआछूत बहुत होती है

आख़िर में यहाॅं पर ये जातिवाद कहाॅं से आया है

जबकि राम ने तो शबरी के झूठे बेरो को खाया हैं

इस माटी में प्रेम की भाषा सर्वोपरि होती है

मीराबाई ने अपना गुरु भक्त रैदास को माना है

दानवीर कर्ण को सूतपुत्र से ही इतिहास ने जाना है

कृष्ण की यहाॅं ग्वाले के रूप में पूजा होती है

फ़िर क्यों मेरे देश मे छुआछूत बहुत होती है

ख़ुदा ने हमे एक ही रंग का लहू दिया है

आपस में प्रेम से रहने का उपदेश दिया है,

फ़िर क्यों भाई को भाई से नफ़रत होती है


आज भी देश मे छुआछूत बहुत होती है

अब तो छोड़ दो इस जातिवाद को,

इससे तिरंगे की आत्मा बहुत रोती है

ये जातिवाद जब खत्म होगा

जब अशिक्षा का ख़ात्मा होगा

शिक्षा रूपी सूरज से ही,

जातिवाद रूपी निशा विधवा होती है

अब मेरे देश मे कोई जातिवाद नहीं है,

सबकी यहाॅं दिल से मुलाक़ात होती है


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