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जाओ तुम

जाओ तुम

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अ घटाओ

अब तुम जाओ

ओर ना पानी

हमें पिलाओ

धरती अब है

त्रप्त हुई ।


चारों तरफ से

प्यास बुझी

रोम-रोम अब

पुलकित हुआ

मन भी अब तो

हर्षित हुआ

रोएं से लेकर

अंदर तक।


पूरा तन

इस धरती का

सरोबार

मदमस्त हुआ।


आँचल झिलमिल

लगा दिखने

पत्तों का रंग

अब साफ हुआ

सूखी बंजर

इस भूमि पर


चारों तरफ है

हरियाली बिछी

झुरमुठ नन्हें महीन

पौधों का

तेजी से है

बढने लगा।


चारों तरफ से

आवाजें मधुर

वातावरण को

गुंजित कर

शोभा और हैं

बढ़ाने लगी।


आम्र के सुन्दर

पेड़ों पर

काली कोयलें

गाने लगी।


भंवरों की भी

तेज चाल

ओर तेज हैं

होने लगी ।


बारिश से

सब तृप्त हुए हैं

क्या मानव

ओर क्या धरती

अब तुम

बस भी करो।


ओर ना

बरसाओ पानी

गर्मी तन की

दूर है कर दी


भूमि पर है

आई जवानी

रह रह कर

अब तुम

ओ मेघा

यूँ मत अब

बरसाओ पानी ।


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