इतिहास
इतिहास
आसान है क्या बनाना
अख़बारों को इतिहास नहीं कहा जाता
इतिहास के पन्ने पर अंकित होते हैं
वही जो तुमसे अलग है
नहीं लगती भूख जिनको
और लगती है भूख तो खाना नहीं मिलता
जो फफोलों संग दौड़ते हैं
बनना होता है धावक और जूते नहीं होते
खर-पात से पटे पोखर में
छिलते छिलाते
मटमैले पानी में जो बने हों तैराक
उस रिक्शे वाले का बनता है इतिहास
जो बिना पैसे गरीब की लाश
मुर्दाखाने से ढो देता है उसके घर तक
और लौट आता है खाली हाथ अपने घर
दोनों हाथों से पैसा लुटाकर
अखबारों में मनमर्जी छपवाकर
अपने लोगों के मुँह से जयकारा लगवाकर
अपनी पीठ खुद थपथपाकर
इतिहास रचा नहीं जा सकता
धन्ना सेठ को ख़बर कर दो।