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Dr nirmala Sharma

Tragedy

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Dr nirmala Sharma

Tragedy

इतवार की तलाश

इतवार की तलाश

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महानगरीय संस्कृति की इस आपा-धापी ने

जीवन को यांत्रिक बनाने वाली इस शैली ने

बहुत कुछ छिन्न - भिन्न कर दिया है

मेरा तो चैन सूकून से भरा इतवार ही छीन लिया है।


मुझे भी सबकी तरह एक अदद इतवार की तलाश है

भीड़ में खंड- खंड बँट गए 'स्व' की तलाश है

 यूँ तो इतवार को सार्वजनिक अवकाश  है

 पर औद्योगिक सभ्यता की इस पर गहरी छाप है।


छह दिन के बाद आने वाला चिर प्रतिक्षित इतवार

सैंकडों सरकारी और गैर सरकारी आयोजनों का शिकार

उद्घाटन, भाषण, मीटिंग, प्रीतिभोज स्नेह मिलन

सामाजिक और  पारिवारिक  उत्सवों का जश्न।

 

भोर में वो चैन से सोने की मुराद

घर पर रह कर रुचि पूर्ण कार्य करने की याद

काम के बोज ताले कही दब सी गई है

इतवार की यही जीवन शैली बन गई है


इतवार जिसकी में वर्षों से करती हूँ प्रतीक्षा

वह हर बार कसौटी बन कर लेता है परीक्षा

कभी तो वास्तविक अवकाश बनकर आओ 

कालचक्र के मलबे से इतवार को ढूँढ लाओ।


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