बसन्ती भोर
बसन्ती भोर
1 min
427
मन बहक-बहक जाता है
तन पुलक-पुलक जाता है
स्पर्श करता है जब समीर
तब हृदय में उठती मीठी सी कोई पीर
बसन्ती रंग का मन पर छाया ऐसा ख़ुमार है
प्रतिबिम्ब देख रही अपना नैनों में छाया प्यार है
मन खिंचता ही चला जाता है उस ओर
तारों को एकटक देखते गुजर गई रात हो गई भोर
पहली किरण के साथ किया अपना श्रृंगार है
हर्षित हुआ मन नृत्य करता मानो सारा संसार है
मन हुआ सतरंगी सांसें करती शोर हैं
सूरज के साथ आई इठलाती बसन्ती भोर है
