🌺वसन्तोत्सव🌺
🌺वसन्तोत्सव🌺
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हल्की हल्की धूप मखमली
बिखर गई वन उपवन मैं
कली कली पर स्वर्णिम सी वह
आभा बिखर गई पल मैं
कल कल करते झरनों से
निर्मित होता संगीत कोई
हृदयस्थल को मोहित करता
राग छेड़ रहा है कोई
नव पल्लव से तरु और पादप की
लदी फदी हैं डालियाँ
सुमन सुभाषित पवन चली है
बना भँवरों की टोलियाँ
मदन पुत्र ऋतुराज बसन्त ने
बरसाया आनन्द रस जग मैं
नर नारी मदमस्त मगन
प्रेम रस से आपूरित ये चमन।
