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✍️कविता✍️

✍️कविता✍️

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मन के भावों को चुनकर

शब्दों की माला मैं पिरोकर

मैं कागज पर कलम की मदद से

लिखती हूँ सुंदर सी कविता।

रसयुक्त, हृदय मैं उतरती

प्रेम बावरी लिखती हूँ

मैं कभी कभी मेरी कविता,

तो कभी ओज से भरी

आक्रोश दिखलाती

सबल बनाती तटस्थ कविता।

कष्ट में हो कोई या दुख से भीगा

उन्हें देख रो पड़ती है,

मेरी भावों से भरी कविता

खिलखिलाता है कोई तो

अधरों को थिरकाकर

कभी मुस्कुरा देती है,

मेरी प्यारी सी कविता

जीवन के विविध रंग

दिखलाती है मेरी

अनन्ददायिनी कविता।

जैसे मन के भाव हों मेरे

वैसी ही बन जाती कविता,

कविता ऐसी जो भी पढ़ता

उसकी ही बन जाती कविता,

सत्यम, शिवम, सुंदरम की

करे स्थापना मेरी कविता,

अप्रतिम, अद्भुत और

कभी कभी तो अनन्यतम

बन जाती कविता,

भावों से भरी

सपनों से बुनी,रंगों से सजी

मेरी प्यारी कविता।

                    

                 



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