बासन्ती उन्माद
बासन्ती उन्माद
नीला नीला आसमाँ,फैला है चहुँ ओर
बगुलों की ये पंक्तियाँ चली क्षितिज की ओर
सूरज ने धरती को पहनाई किरणों की चादर
धरती ने पहना वह चोला किया बसन्ती ऋतु का आदर
हरियाली के ओज से निखर उठी ये धरा
नजर जहाँ भी डाल लो मन बस वहीं ठहरा
कली कली यूँ खिल उठी जैसे हँसा बसन्त
भँवरों की गुँजार से मन मैं उठी उमंग
धानी चूनर ओढ़ कर ऐसा किया श्रृंगार
वसुंधरा की आभा से आलोकित हुआ संसार
हरे, गुलाबी, नीले, पीले फूल खिले है अनेक
मनवा भरा आह्लाद से हर्षित हुआ अतिरेक
अभिलाषाओं की लहरियाँ लेने लगी तरंग
ह्रदय वेग से उड़ चला जैसे चले तुरंग
