फागुन
फागुन
फागुन मास मैं मिल मधुमास
चहुँ ओर प्रेम रस बरसाया
फागुन का मदमस्त महीना आया
यूँ चला सलिल प्रकृति मैं
जैसे गुलाल बिखराया
रंगों की छटा समाहित कर
वातावरण बड़ा हरषाया
फागुन का मदमस्त महीना आया
चित्त रहे प्रसन्न
बाजे ढप-मृदंग
नाचे मन मयूर
उड़ें होली के रंग
जीवन का राग सुनाया
फागुन का मदमस्त महीना आया
राधिका रँगी है बृज मैं
मोहन के साथ रंग मैं
बिखरा अबीर कहीं लाल- लाल
उठी मन मैं उमंग
फागुन के संग
कामदेव ने बाण चलाया
फागुन का मदमस्त महीना आया
नैनों के बाण करते प्रयाण
मन पुलक -पुलक
तन सिहर -सिहर है जाता
उठती तरंग ,मन बन मलंग
आनंद मगन हो आया
फागुन का मदमस्त महीना आया।