इश्क़ की तौहीन
इश्क़ की तौहीन
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मैंने गिरते को संभलते देखा है,
लोगों को रोज नए-नए चेहरे बदलते देखा है,
जो कहते थे की आपके बिना जी नहीं सकते,
कल किसी औऱ की बाहों में उन्हें मचलते देखा है !
इश्क़ की तौहीन करने वालों,
जरा ध्यान से सुनो तुम्हें इश्क़ की आह लगेगी,
जैसे मैं जला हू रात-दिन, तुम्हारी याद में
कल तू भी जलेगी !
इन आँखों ने हर रोज,
अपनों को अपनों से लड़ते देखा है,
मोहब्बत की गलियों में, महबूब को बिछड़ते देखा है,
सागर पास होते हुये भी, लोगों को प्यासा देखा है।
मैंने गिरते को संभलते देखा है,
लोगों को रोज नए-नए चेहरे बदलते देखा है,
जो कहते थे की आपके बिना जी नहीं सकते,
कल किसी और की बाहों में उन्हें मचलते देखा है !