इश्क
इश्क
तेरे इश्क को तेरी निगाहों
से पड़ा है हमने
तेरे इश्क को तेरे अल्फाज़ो
से पिया है हमने
तेरे इश्क की आहट से
दरवाजों पर लागे
जले उतर गए हैं
जो कभी खंडर हुआ करता
था वो आज तेरे इश्क का आशियाना है
न देखना मुझे ताज महल
न देखना मुझे एफिल टावर
न देखना मुझे स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी
ना देखना मुझे कुछ
तेरे इश्क के अक्स से
मोहब्बत की एक एक बूंद को तेरी
निगाहो से देखना है
तेरी मोहब्बत के साए में खुद को
खोटे देखना है
वो किताब भी कितनी खूबसूरत होगी
जिस किताब में तेरी खूबसुरती का पाना होगा
वो किताब भी कितनी कातिलाना होगी
जिसमे तेरी कातिलाना
अदा का पाना होगा..
क्या खूबसूरत वो किताब होगी
क्या खूबसूरत वो इश्क होगा
क्या खूबसूरत वो लम्हा होगा
क्या खूबसूरत वो सियाही होगी
क्या खूबसूरत वो समां होगा
जिस किताब में तेरी मोहब्बत के अल्फाज होंगे
वो सियाही जिस सियाही से तेरा नाम लिखा जाएगा
वो सियाही कितनी खूबसुरत होगी जब तेरे महंदी रचे हाथो से
नाम तेरा मेरा साथ में लिखा जायेगा।