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Praveen Gola

Romance

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Praveen Gola

Romance

इश्क पर जोर

इश्क पर जोर

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ये कैसी शर्तों से बाँध दिया तूने ?

कि जब ज़िस्म जले ,तब कोई शोर ना हो।

मद्धम - मद्धम सी चिंगारी को ,

जब कभी भी मिले हवा ,तब तेरे सिवा कोई और ना हो।

अक्सर रातों में तेरा चेहरा नज़र आता ,

गर्म इस ज़िस्म पर बर्फ रखती ,जब तक भोर ना हो।

तुझे आने को गर मैं कहती ,तो ये ज़माना सोचे ....

कि कहीं मेरे बिस्तर पर कोई चोर ना हो।

अब इस इश्क की गर्मी को ,हम करेंगे दफा ....

जब तक अपने इश्क पर कोई जोर ना हो।।


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