इश्क खेल
इश्क खेल
हाथों से पीला देते तुमको वो जाम जो तुम्हें गंवारा था
तुम तो ठहरे गैरों की बाहों में जो तड़पा वो दिल हमारा था।
कह कर इतना मगरुर हुए, फिर खुद ही नशे में चूर हुए
गैरों में इतना मशगूल हुए, उन्हीं के कंधों का सहारा था।
क्या रखा है अब मुझ में यही कहा था तुमने मुझको
ये दिल मेरा तेरे इश्क में, शायद खुद से मारा था।
इश्क खेल, खेलकर तुमने दिल को मेरे तोड़ दिया
अब कहते हो प्यार नहीं जाओ भी तुमको छोड़ दिया।
कुछ यूं खेले मेरे दिल से, टुकड़ों में उसे बिखरा दिया,
तुमको ठुकराने के सिवा, बचा ना कोई चारा था।
छोड़ दिया मैंने भी तुमको हुई पलाश की लकड़ी मैं
निकाल दिया उसी दिल से, जिस दिल में तुझे उतारा था।