इश्क का
इश्क का
कहूं मैं तुझे अपना
मान तू मुझे अपना
क्यों रहे हम दूर-दूर
हम हैं एक दूजे का सपना
नहीं कोई तेरी खता
खत्म कर मेरी ये सजा
और कब तक सहें
एक तू ही है मेरी मृगतृष्णा
तुझे मैं अपनी जान लिख दूं
तुझे अपनी पहचान लिख दूं
और नाम तेरे गर तू कहे तो
तुझे मैं अपनी धड़कन लिख दूं
लौट आ तु एक बार फिर
थाम ले हाथ मेरा एक बार फिर
माथे मेरे चंदन तिलक सजा
बना ले मुझे अपना एक बार फिर
बीत जाये मौसम जुदाई का
आ जाये सावन खाहिश का
बनकर रिमझिम बारिश
बंसत आगमन कर इश्क का।