चांद
चांद
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जरा गहरी होगी आज रात
ऐ अंधेरे इतराना ना आज
निकलेगा जब चांद करवाचौथ का
तो छा जाएगा सारे आसमां पर
मिट जाएगी उदासी तारों की
खिल जाएगी चांदनी चेहरों की
हो जाएगा खत्म इंतजार जब
आंगन में मेरे उतरेगा चांद
बह जाएगी नदी प्रेम की
सागर भी होगा मेरे पास
ठहर जाएगी लहरे भी चांद
संग जब साजन का होगा दीदार
करू सुहाग पूजा पिया संग
रहे सलामत सोलह श्रृंगार उम्रभर।