इश्क़ और शायरी
इश्क़ और शायरी
इश्क़ और शायरी, ऐसी बीमारियाँ है जनाब,
जब तक एक आकर जाती नहीं,
तब तक दूसरी आती नहीं।
दोनों ने हमें सिखाया है, जीने का मक़सद,
जीने का सही मतलब और सही आदाब।
पहले बीमारी ए इश्क़ का हाल सुनें,
अपने दिल के धागों को बुनें।
फिर बीमारी ए शायरी का हाल सुनें,
अपने दिमाग़ के तारों को तनें।
इश्क़ में एक जोश सा हमेशा रहता है,
तब होश तो गुम हो ही जाता है।
क्यूँकि इश्क़ दिमाग़ का काम नहीं होता है,
सिर्फ़ दिल का क़ाबू और पहरा रहता है।
गुम रहता है उसके ख़्यालों में हर लम्हा,
नींद उड़ जाती है, सुकून खोया रहता है।
दिल की धड़कनें तेज़ रहती हैं,
ख़्वाबों में किसी का बसेरा रहता है।
भूख प्यास सब छिन जाती है,
दिल का चमन बुझा खिला रहता है।
उसको बस देखने की बेताबी रहती है,
उसको मिलने को दिल मचलता है।
न जाने रात कब होती है,
न जाने कब सवेरा होता है।
न दोपहर का पता रहता है,
न जाने कब अंधेरा होता है।
जब हमारा सनम हमसे रूठता है,
तब दिल बहुत ज़ोरों से टूटता है।
तब इंसान हँसना भूल जाता है,
सिर्फ़ रोता है और बिलखता है।
अपना हाल ए दिल किससे कहें,
और दिल फूट फूट कर रोता है।
तब काग़ज़ और क़लम के सहारे,
अपना हाल ए दिल बयाँ होता है।
काग़ज़ पर लिख देते है अल्फ़ाज़ों में,
अपने दिल के सारे जज़्बात और अरमान।
जो रह गए अधूरे और जो हो गए कुर्बान,
काग़ज़ क़लम साथ देते हैं तेरा दिल ए नादान।
क्यूँ किया तूने इश्क़ तू बता,
तूने क्यूँ और कैसे कर दी यह ख़ता।
काग़ज़ मुझसे करता है सवाल,
तो क़लम देती है सही राह का पता।
इश्क़ न करना तू मेरे दोस्त मेरे हमदम,
खुश रहे तू हमेशा हर पल हर दम।
इश्क़ करना है तो तेरे अपनों से करना,
जीना तो सिर्फ़ अपनों के लिए जीना।
क्यूँ है तुझे किसी बेवफ़ा पर मरना,
मरना है तो अपने वतन पर मरना।
इश्क़ और शायरी, ऐसी बीमारियाँ हैं जनाब,
जब तक एक आकर जाती नहीं,
तब तक दूसरी आती नहीं।
दोनों ने हमें सिखाया है, जीने का मक़सद,
जीने का सही मतलब और सही आदाब।