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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

इस दीवाली स्वदेशी अपनाओ

इस दीवाली स्वदेशी अपनाओ

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स्वदेशी अपनाओ और स्वदेशी ही खाओ

इस दीवाली, मिट्टी का ही दीपक जलाओ

छोड़ो चाइना लाईट, कटेगी चाइना काईट

इस दीवाली देश का पैसा, देश मे लगाओ


फ्लिपकार्ट, अमेजन बाय-बाय कर जाओ

देश के लोगो के लिये, स्वदेशमंत्र अपनाओ

वैसे भी क्या पुराना पैकिंग खाने को, खाना

सामने बने ताजा रसगुल्ले घर पर ले जाओ


इस दीवाली नुक्कड़ ठेले से कुछ ले जाओ

और उनके घर भी ख़ुशियों का दीप जलाओ

अपना अहंकार एक बार भीतर से मिटाओ

इस दीवाली पिछड़े हुओं को गले लगाओ


काम, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ आदि को जलाओ

एक तम नाशक दीपक भीतर तो जलाओ

बाहर से ज्यादा, भीतर का अंधकार जलाओ

इस दीवाली, आप मन का अंधकार मिटाओ


कैडबरी छोड़ो, इस दीवाली स्वदेशी खाओ

बहुराष्ट्रीय कंपनियों का षड्यंत्र भाप जाओ

इस दीवाली, मिलावटी चीजों को छोड़ जाओ

घर में देशी घी की लापसी से दीवाली मनाओ


सामने से ही लोग जब मिलावट कर देते है

फिर पीछे से तुम कितने ही गीत गुनगुनाओ

इस दौर में ऑनलाइन शॉपिंग भूल जाओ

घर में शुद्ध बनाओ और परिवार संग खाओ


इस दीवाली, मिलावटों को ज़रा तो डराओ

स्वदेशी अपनाओ और स्वदेशी ही खाओ

इस बार घर बाहर से नहीं, भीतर से सजाओ

इस दीवाली गरीबों के संग दीपक जलाओ


रब तुमसे खुश होगा, बंधुत्व भाव जगाओ

पड़ोसी की खुशियों में एक बार मुस्कुराओ

इस दीवाली खुद की ख़ुदी पहचान जाओ

रवि में यूं खो जाओ, रश्मि संग आओ-जाओ



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