इन्तज़ार
इन्तज़ार
दिल के कमरे में संजोए है यादें तेरी,
बड़ा करीने से सजाया है हर कोना हमने,
अश्कों के पानी से सफा करते हैं उन्हें,
आंचल के कोने से तस्वीरें पौंछी जाती है,
एहसास के इत्र से महकता है कमरा मेरा,
कालीन पर दर्द के फूल बिखेर देती हूं,
बंद कर देती हूं हौले से दरवाजा,
किसी को इजाजत नहीं उसमें आने की,
यकीन कर उसकी चाबी मैंने,
दामन में छुपा कर बांधी है
और पलकों को बिछाकर इंतजार करती हूं
तेरा किसी रोज तो तेरा आना होगा इस तरफ,
इसी उम्मीद में जिए जा रही हूं,
एक आस है सीने में कब से,
एक हुक सी उठती है,
आंख टकटकी बांधकर देखती है,
मैं गेसू बिखेर कर बैठ जाती हूं।
चौखट पर कल तो हिचकी भी आई थी मुझे,
कल फिर पपीहे ने गीत गाया था,
मैं बदहवास सी भागी थी नंगे पैर यूं ही,
पर तुझे मैंने कहीं भी ना पाया था।
इंतजार करते करते शब भी आ गई,
यूं ही खाली हाथ,
तारे भी झपकी लेने लगे,
चांद मेरी तरफ देख कर हंस रहा था,
मानो कह रहा था तेरे नसीब में वह नहीं,
या मोहब्बत ही नहीं है।

