इन्तेजार और मुक्ति
इन्तेजार और मुक्ति
नश्वर अश्रु को भी, अमर कर गया जो
क्षणभंगुर को भी, शाश्वत कर गया जो
प्यार में और ना जाने कितने कीर्तिमान रच गया वो
हर पल को पल पल जी गया जो ।
होकर के फ़ना खुद, अपने प्यार को अजर अमर है कर गया वो
यादो में ऐसे बस गया वो, सपनो की गलियों में रच गया वो
प्रकृति का हर कण कण, जिसकी ध्वनि सुनाता है ।
वो कोई और नही, हां कोई और नही,
वो मेरा प्यार, मेरा दिलबर, मेरा संसार वो कहलाता है ।
उसने मुझको प्यार है क्या, ये सिखलाया है
उसने मुझको इकरार है क्या, ये बतलाया है
पल पल उसकी प्रतीक्षा अब मैं करता हूँ,
रहकर दूर उससे हर पल मैं मरता हूँ,
है आश ये उससे, जीवन के इस दुष्चक्र में
लेकर सुध मेरी वो मुझको तृप्त कर दे बस,
एक बार मिलकर मुझसे, मुझको मोक्ष देदे बस ।
है अटकी अंतिम साँसे हैं, इन्तेजार में उसके रुकी हुई,
एक बार वो आकर देखले, मिल जाये मुझको मुक्ति अभी यही ।