इंसानियत अभी भी जिंदा है !
इंसानियत अभी भी जिंदा है !
इंसानियत अभी भी जिंदा है !
मानव की महत्वाकांक्षाओं के तले
पिस रहा बेचारा परिंदा है।
लेकिन इंसानियत अभी भी जिंदा है।
भले ही वो लोभ लिप्साओं ,छल-छदम् की बलवती हुई
उफान में बहकर हुई आज शर्मिंदा है !
पर इंसानियत अभी जिंदा है।
बस जरूरत है उसमें जान डालकर उसे जीवंत बनाने की।
मानवता की उजड़ी बगिया को सींच कर वसंत लाने की।
प्रेम, भाईचारे और सद्भावना का हम बीज बोएं ,
फल लगते सचमें इसमें अमृत तुल्य चुनिंदा है।
इंसानियत अभी भी जिंदा है।
आपसी वैमनस्य को त्यागें हम।
दिखावटी सफलता के पीछे न भागें हम।
जिस विकास की हम डींगे हाँकते !
वो वास्तव में दुर्भावनाओं से ग्रस्त महज़ एक पुलिंदा है।
जीवंत बनाएं हम जान डालकर इसमें।
इसी में हित है हमारा,
इसी में फँसी हकला रही परोपकार रूपी मानवता की परिंदा है।
इंसानियत अभी भी जिंदा है।