इंसान की अंतरिक्ष यात्रा।
इंसान की अंतरिक्ष यात्रा।
जब भी मैं यात्रा का सोचता,
अंतरिक्ष जहन में घूमता,
लेकिन साधन चाहिए बेशुमार,
कसमसा कर,
त्याग देता,
और अपनी विवशता को,
खूब कोसता।
एक दिन यूं ही जोश आया,
यू ट्यूब पे स्पेसक्राफ्ट बनाने का तरीका पढ़ डाला,
बहुत सोचा,
लेकिन कोई फार्मूला न जमा,
आखिर एटम को तोड़ने का सोचा,
और उस एनर्जी को ईंधन के रूप में,
उपयोग लाने का सोचा।
आखिर एटम को तोड़ा गया,
जो एनर्जी निकली,
उसे संरक्षित करके रखा गया,
और एक दिन स्पेसक्राफ्ट,
जो एटोमिक एनर्जी से चले,
तैयार किया गया।
अब दुविधा,
साथ में किसको ले जाया जाए,
बहुतों को पुछा,
लेकिन कोई हां न बोला,
वरना कौन जान खतरे में डाले,
सब लगे मुकरने,
आखिर याद आई उसकी,
यनि रसकी की,
सोचा पुरानी सहेली है,
शायद भर दे हामी।
आखिर उसको सब समझाया,
उसने मुझे गले से लगाया,
और झट से चलने को बोला।
एक दिन वो भी आया,
जब दोनों थे स्पेसक्राफ्ट के अंदर,
यात्रा हुई आरंभ।
ये था ओटोनोमस स्पेसक्राफ्ट,
कुछ नहीं था करना,
बस स्पेस का मजा था लेना।
जैसे की पार पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण,
आया मैसेज एलियन भाई से,
बोला पृथ्वी बंधू "स्वागत है",
आइए हमारे यहां,
बिताइए कुछ पल,
और हमसे दोस्ती आगे बढ़ाइए।
तुरंत हामी भरी,
स्पेसक्राफ्ट नर्की गृह पे उतरी,
हम दोनों यनि रसकी और मैं,
निकले बाहर,
हुआ भव्य स्वागत,
एक गोले में खड़ा किया गया,
और फिर प्रस्थान बोला गया।
अगले ही क्षण थे,
एलियनों के प्रधानमंत्री के पास,
उसने पहले हाथ मिलाया,
फिर पास बिठाया,
और सांस्कृतिक कार्यक्रम दिखाया,
फिर अपने प्रतिष्ठित नागरिकों के साथ,
भोज कराया।
अपने परियावरण मंत्री को बुलाया,
अंतरिक्ष घुमाने का इंतजाम करवाया,
एक एक ग्रह के,
प्रतिनिधि से मिलवाया,
आखिर में हमने,
एलियनों को,
पृथ्वी पे आने का न्यौता दिया,
वहां से हुए विदा।