इंसान हूँ मैं
इंसान हूँ मैं
माना साधारण ,सामान्य सा मामूली हूँ मैं, कभी तर्क वितर्क, मतिवासी,
मतलब-अर्थ की पराकाष्ठा हूँ मैं ,कभी बेवजह बेकार सा बकवासी ,निरर्थक बेहद हूँ मैं,
कभी जूनून की तपिश में तपता,जल थल नभ तीनो को अपने तेज की अग्नि से धड़काता जिद्दोजहद की गंगा में नहाया कहर सहस्त्र हूँ मैं ,
कभी बेमतलब सा इठलाता ,विदूषक का शीर्षक ओढ़े बेमतलबी मसखरा हूँ मैं,
कभी सौन्दर्य सी कविता को मोतियों के हार से पिरोने वाला ,इस संसार की शोभा मैं चार चाँद लगाता कवि हूँ मैं , कभी खुद एक प्रदर्शनी मैं सुसज्जित सा बैठा,
अपनी प्रशंसा का प्यासा, खुद एक उपन्यास हूँ मैं,
माना एक चर्चित ,बहुलिखित -वर्णित ,जनसैलाब मैं उतरने से डरता ,
यादगार हूँ मैं , कभी खुद उसी भीड़ का हिस्सा हो, एक ,मासूम प्रशंसक भी हूँ मैं ,
कभी धर्मनिरपेक्षता ,सहिष्णुता का पाठ कहने ,समझने वाला शिक्षक हूँ मैं , कभी खुद अशिष्टता , बेसब्री की मूरत ,अज्ञान की मशाल अपने दम्भ की चिंगारी से जलाता ,
परपीड़ा में सुख पाने वाला मूढ़ हूँ मैं ,
कभी प्रौढ़ होते घर के बड़े-बुजुर्ग ,हमारे वृद्धों को भवदीय ,चरणस्पर्श , अमृतकलश की संज्ञा देने वाला श्रवण हूँ मैं , कभी उन्ही अमृत के निर्बलता ,अक्षमता, कमजोरी के क्षणों में खुद ही की जलाई निराशा ,हताशा की आग में रोष-आक्रोश ,आरोप-प्रत्यारोप का खेल उन निश्छल,बेगुनाहों से खेल अपने हाथों के लिए सुकून की गर्मी छीनने वाला पाखंडी ,मतलबी हूँ मैं ,
कभी इस जगत की अशुद्धता ,नापाकी ,गंदगी के समुद्र को अपने सर पर मथते,संसार का गरल हर रोज अपने कंठ में निगलते हमारे नीलकंठ उन हरिजनों का हित अपने ह्रदय में लिए अपनी आवाज़ उठता ,उनके लिए उनके साथ प्रयत्न करता मैं शिक्षित ,गुणवान ,उनका हितेषी , सच्चा समाजसेवी हूँ मैं , कभी उन्ही अछूतों पर अपनी ओछी मानसिकता ,झूठे दम्भ को थोपने वाला ,उनपर पैर रख, उन्हें अपनी कामयाबी की डगर मैं एक सीढ़ी,ज़ीना ,एक जरिया बंनाने वाला जीता जगता उदाहरण हूँ मैं,
कभी उदारता ,दरियादिली ,रहमत की मिसाल , सुदामा का कृष्ण हूँ मैं , कभी लाचारी ,हीनता के बीज से पनपा, इर्षा जलन कुढ़न के प्रकाश में अपनी जड़ें फैलाता बरगद हूँ मैं ,अनदेखी अनसुनी अनचाही असूया हूँ मैं ,
कभी वास्तविकता ,यथार्थता,निष्ठता का पुराण ,सत्य की बानगी ,प्रकृति सा निर्मल पारदर्शी हूँ मैं , कभी अपने वंशज अनुरूप उछले -कूदते ,अपने मदारी के डमरू पर नाचते कपि प्रतिरूप नकलची ,नकली , अपने स्वामी को रिझाने, खुश करने हेतु कृत्रिम सा बनावटी बनता असत्य हूँ मैं,
इंसान हूँ मैं ,
हिरण्यकशिपु सा राक्षस नहीं , श्री राम सा भगवान नहीं,
साधारण सामान्य सा मामूली इंसान हूँ मैं
