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आकिब जावेद

Drama

5.0  

आकिब जावेद

Drama

इमारत है ये

इमारत है ये

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560


झूठ, फरेब, मक्कारी से दूर

स्वार्थ, अज्ञानता, तिरस्कार को भूल

सबकी सुनें, किसी से कुछ ना कहे

इमारत हैं ये,

सदियों से ऐसी ही रहें !


कई राज़ों को खुद में समेटे

पीढ़ियों को सामने से देखे

गुज़रती चली जा रही हैं ये

इमारत हैं ये,

सदियों से ऐसी ही रहे !


किसी ने चोट पहुँचाई

किसी ने मरम्मत करवाई

किसी ने की खूब लड़ाई

प्यार, स्नेह, लाड़ भी पाई

सबकी सुनें, किसी से कुछ ना कहे,

इमारत हैं ये

सदियों से ऐसी ही रहें !


बनाया है एक इमारत

स्वयं करूणानिधि ने भी

स्त्री और पुरुष के मेल से

झूठ, फरेब, अज्ञानता से रखें खुद को दूर

यही यह शाश्वत इमारत है


जिधर से चलता रहता है

जीवन-मरण का विधान

सृष्टि के रहने तक।

ये शरीर भी इमारत हैं एक

सदियों से ऐसी ही रहें !


अब हमें करना ईश्वर प्रदत्त

इमारत का सद्कर्म, सद्गुणों से

रख रखाव, ताकि सुरक्षित हो सके

ये जीवन हमारा जन्म-जन्मान्तर तक,

इमारत है ये

सदियों से ऐसी ही रहें !


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