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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Romance Classics

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Romance Classics

❣इल्तिजा❣÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

❣इल्तिजा❣÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

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नाराज कर तुम्हें

उदास आज हम हैं,

भटकते राह मेें वहाँ 

अजनबी के संग

मिले तुम हमदम मेरे


पाया चैन करार हमने

और बिखर बिखर 

निखरते रहे 

जीवन में जीवन के

अनोखे सारे रंग,,

साँँसों की गुनगुन में

धड़कन की चाहत में


ख्वाबों की महफिल में

चेहरा तुम्हारा,बात तुम्हारी 

लफ्ज़,अश्क बनकर

उभरते हैं

खुदा तुझे जाना जां


जां रश्के-कमर है

दम पर तेरे,

निगाहें तेेेेरी

बाहें तेरी

लरजते होंठ तेरे

सब नेमत सजे हैं

इन्हे रहने दो 


यूँ बस सजा,

बस यह इल्तिजा 

बस यह इल्तिजा।


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