इक लम्हा मुस्करा गया--
इक लम्हा मुस्करा गया--
अदब से, इक लम्हा मुस्करा गया।
कुछ टूटा, फ़िर टूट कर डरा गया।
हारा ख़ुद से, ख़ुद ही जलता रहा।
मगर बेपरवाह-सा, कब हरा गया।
तड़पता रहा, वो सौदाई-सा मग़र।
कौन हूँ मैं! सोचा, तो घबरा गया।
मिला, फ़िर मुझे मिला नहीं कभी।
मिला ऐसे भी, वह ये बिसरा गया।
न मुक़द्दर, न शकील काम आया।
तन्हा ज़मीन, तन्हाई पसरा गया।
हरसू तसव्वुर बना ही, बैठा रहा।
क्यूँ ख़्याल आकर, वो ज़रा गया।
आब-सा खिला रहा, मुझमें कहीं।
पर शाम-सी सियाही, दुहरा गया।
रंज-ए-फ़ुर्क़त, वह दिखाता रहा।
क्यूँ आँखों में, समा कुहरा गया।
मोहसिन! वो गुजरता लम्हा हो।
जो नीरस गर्द-सी, बिखरा गया।