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ca. Ratan Kumar Agarwala

Classics Inspirational

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Classics Inspirational

इच्छामृत्यु

इच्छामृत्यु

2 mins
250


हाल ही में श्री अश्विनी कुमार यादव जी की एक फेसबुक पोस्ट पढ़ी थी।

उसके आधार पर ही यह कविता लिखी है “इच्छामृत्यु”

 

काल आया, जब रावण ने काटे, जटायु के दोनों पंख,

जटायु ने ललकारा मौत को, लगाऊंगा मैं मौत को अंग।

पर न करना आगे बढ़ने की कोशिश, न छू सकती मौत,

सुना दूँ सीता माँ की सुधि, तभी करूँगा ग्रहण मैं मौत।

 

नहीं छू पाई मौत जटायु को, काँप रही थी वह थर थर,

खड़ी रही, कांपती रही, जटायु को मिला इच्छा मृत्यु का वर।

जटायु लेटें श्रीराम की गोद में, चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान,

सहला रहे श्रीराम जटायु को, रो रहे प्रभु अविरल अविराम।

 

भीष्म पितामह को भी तो था, इसी इच्छा मृत्यु का वरदान,

इंतजार कर रहे थे मौत का सो कर, बिछे थे सैकड़ों वाण।

आँखों में थे आँसू भीष्म के, रो रहे थे पितामह अविराम,

बड़ा उलट दृश्य था यह, मुस्कुरा रहे थे प्रभु कृष्ण भगवान।

 

बहुत अंतर था दोनों दृश्यों में, प्रतीत हो रही भिन्नता अपार,

जटायु को मिली श्रीराम की गोद, भीष्म को वाणों का आधार।

जटायु ने किया नारी का सम्मान, त्याग दिए अपने प्राण,

यह कर्मफल था जटायु का, कि मिल गए उन्हें प्रभु श्रीराम।

 

भीष्म ने देखी नारी कि लुटती इज्जत, न किया कोई विरोध,

द्रौपदी रोती रही, भीष्म दुःशासन का न कर पाए अवरोध।

सर झुकाये बैठे रहे दरबार में, न कर पाए द्रौपदी की रक्षा,

जाने किस का धर्म संकट था, किस बात की थी प्रतीक्षा?

 

इसी बात का परिणाम था, मिली भीष्म को वाणों की शय्या,

जटायु ने किया नारी सम्मान, मिली श्रीराम की गोद शय्या।

जो दूसरों की मदद नहीं करते, उनका होता भीष्म परिणाम,

औरों के लिए जो करते संघर्ष,  होते जटायु सम कीर्तिमान।



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