हवस....
हवस....
अपनी नजरों के नजरिये में मेरी
चाल लिए फिरते हैं,
हवस के मछुआरे माँ, बाहर देखो
जाल लिए फिरते हैं..
विश्वास के कांटे में लोग धोखे का
आटा लपेट रहे हैं,
भोलेपन के आँचल में लोग गंदी
दरिंदगी समेट रहे हैं..
जिस्म की भूख में मर्द कुत्तों की
खाल लिए फिरते हैं,
हवस के मछुआरे माँ, बाहर देखो
जाल लिए फिरते हैं...
किस किस दामिनी का जिक्र करूँ
हर घर इज्जत तार तार,
सब कौरव बने फिर रहे हैं, कृष्ण
बनने को सबका इनकार..
सब बेटियों के यमराज बने मौत
का काल लिए फिरते हैं,
हवस के मछुआरे माँ, बाहर देखो
जाल लिए फिरते हैं...
