तन्हा रोतें....
तन्हा रोतें....
सारी रात बनके याद वो यूँ ही पिघलते रहे,
हम कहीं और वो कहीं बनके शमा जलते रहे,
वक़्त भी है आँधियों सा गुजरता मुसलसल,
कैसा नसीब है कि हम यूँ ही लम्हों में फिसलते रहे,
मसला था कि मुक्कमल वफा से हम महरूम ही रहे,
गिरते रहे अश्क उनकी चाह में
गिर के संभलते रहे, टूटते गिरते रहे वो बुने सपनों के मकां जो मेरे,
संवरते रूह उनकी याद में फिर नए सपने पलते रहे,
दिल की देहरी पर ताक रहे पुराने लम्हों के फसाने,
बनके एक ख्वाब वो सीने में उतरकर बिलखते रहे,
हर पहर वो मुझमें समाते रहे यादों की सौगात बनके,
यादों के अंजुमन में हम बस खुद में ही सुलगते रहे,
हम सुलगते जिस्म थे और वो थे रूह-ए-इश्क़,
हम जल उठे मिलके बेसबब और वो बरसते रहे,
गुजर गया जो कारवां इश्क़ की राहों में गिरते संभलते,
सारी रात उस एहसास के तिलिस्म में हम संवरते रहे।
